वोटो की राजनीत पर चलने लगा देश | कर्जे की भीख मांग कर पलने लगा है देश || शासन की सोच हो गयी सत्ता बनी रहे | जनता के बीच आपसी हिंसा तनी रहे || हिन्दू को जातिवाद में अब बाँट दिया है | मुस्लिम को निजी सोच से ही काट दिया है || मतदान हो रहा है अब जाति के नाम पर | बिकने लगे हैं लोग भी अब सस्ते दम पर || दल दल में भ्रटाचार के धसने लगे हैं दल | कुर्सी के जोड़ तोड़ में फसने लगे हैं दल || नेता सदैव रहते हैं अपनी जुगाड़ में | जनता को झोंकते हैं समस्या भाड़ में || जो दुष्ट चाल्वाजों की चालों को मत दे | सत्ता के स्वार्थ लिप्त दलालों को मात दे || बह चाल देश भक्ति की चलनी ही चाहिए | शासन प्रणाली भ्रष्ट बदलनी ही चाहिए || १ ||
शासन है प्रजातंत्र का सिर्फ नाम के लिए | होते चुनाव नेताओं के काम के लिये || सब दल दल अलग अलग लड़ते चुनाव हैं | सत्तासमर में बैठे सभी एक नाव हैं || जीता जो उसे सत्ता का संसार मिल गया | सत्ता के साथ भत्ता का अधिकार मिल गया || नेता जी घर पर जीत की खुशियाँ मनाते हैं | पर कार्यकर्ता जेल की चक्की चलाते हैं || जनता की सेवा करने का जो लक्ष्य है लिए | जनता ने उनकी सेवाओं को वोट हैं दिए || होता चुनावी खर्च व्यर्थ धन है किस लिए | जनता के प्रतिनिधि को है वेतन किस लिए || इससे कि लोकतंत्र के अरमान सफल हों | वलिदानी शहीदों के वलिदान सफल हों || हर दिल में आग विप्लवी पलनी चाहिए | शासन प्रणाली भ्रष्ट बदलनी ही चाहिए || २ ||
अनपढ चुनाव जीतकर पते हैं गाडियां | पढ़ लिखकर नो जवानो की बेकार डिग्रियाँ || हो सत्ता राजनीत में प्रवेश परिकछा | जिसमें चलेगी योग्यता न स्वयं की इच्छा || करले परीक्छा पास वह ही परचा भर सके | सो करोड़ जनता पर जो शासन कर सके || जन सेवा में दकछ और एम् ए पास हो | भारत के किसी गांव में ही मूल वास हो || निरपराधी जीवन व उज्ज्वल चरित्र हो | तन से भले हो मलिन मन से पवित्र हो || मंत्री जो बने पास हो वह सिविल परीक्छा | अधिकारियों को दे सके आदर्श की शिक्छा || जनता की समस्याओं का निदान कर सके | एक झोपड़ी में बैठ कर जलपान कर सके || यह नीति सविंधान में ढलनी ही चाहिए | शासन प्रणाली भ्रष्ट बदलनी ही चाहिए || ३ ||
नेता हमारे देश के क्या काम कर रहे | अमनो अमन की फसल को बे खोफ चर रहे || जब चाहा जातिवाद का पंगा करा दिया | हिन्दू औ मुसलमानों का दंगा करा दिया || अगड़े पिछड़े का पाठ पढाते हैं देश को | आरक्छ्णों की भेंट चढाते हैं देश को || भारत की कार्यप्रणाली जब प्रजातंत्र है | सर्वे भवन्तु सुखिन जिसका मूल मन्त्र है || जाति विशेष वर्ग को है सुविधा किस लिए | सामान्य साहिता होती दुविधा किस लिए || वोटों के लिए आरछ्ण व्यापार न बने | जाति विशेष वाला अब अधिकार न बने || जब तक समान देश अधिकार न होगा | तब तक इस भारतवर्ष का उद्धार न होगा || नेता की एसी चाहत उछ्लनी ही चाहिए | शासन प्रणाली भ्रष्ट, बदलनी ही चाहिए || ४ ||
जिनके सरों पे देश की इज्जत का ताज है | बगुला भगत सबके सब घोटालेवाज हैं || खाकर के कोई यूरिया चारा पचा गया बोफोर्स दलाली था अरबों बचा गया || कोई कफन को बेचकर ईमान चर गया | कोई वतन की सरजमी का सोदा कर गया || नेता लगे हैं वोटों की सब मारा मार में | सबसे बड़ा आतंक है अपनी सरकार में || जिसको भी चाहो खुलेंआम गोली मार दो | जिसकी भी जहाँ चाहों इज्जत उतार दो || देश की रक्छा को अब सेना स्वतंत्र हो | नेताओं के हाथ में न कोई तन्त्र हो || फिर देखते हैं कैसे उग्रवाद रहेगा | फिर देखते हैं कैसे व्यर्थ खून बहेगा || भारत की दुर्दशा यह संभलनी ही चाहिए | शासन प्रणाली भ्रष्ट, बदलनी ही चाहिए || ५ ||
वोटों की राजनीति से बदनाम देश है | वोटों की राजनीति से बदला परिवेश है || वोटों की राजनीति ही शिक्षा बदल रही | वोटों की राजनीति ही संस्क्रति बदल रही || वोटों की राजनीति ने तोडा है देश को | वोटों की राजनीति ने बदला परिवेश को || वोटों की राजनीति से यदि देश चलेगा | भूखों मरेगी जनता सिर्फ नेता पलेगा || जो गंदी राजनीति का विनाश कर सके | जनता में द्रढ चरित्र का विकाश कर सके || वह भारतीय संस्कृति का नौनिहाल हो | जिसकी रगों देश भक्ति का उवाल हो || वह टोली जवानों की निकलनी ही चाहिए | शासन प्रणाली भ्रष्ट, बदलनी ही चाहिए || ६ ||
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