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ओ भूरी बिल्ली सावधान |
ओ काले भालू सावधान ||
मतलव के चालू सावधान |
सत्ता के पालू सावधान ||
अब जाग गयेहैं सिंहराज |
रख दो उतार कर यह ताज ||
छोडो बंदर से सांठ गांठ |
अपनी करनी से आओ बाज ||
जंगल का पानी सूख गया ,
फल फूल कहाँ हैं उत्तर दो ||
बनवासी राम का प्रिय भोज ,
कंदमूल कहाँ हैं उत्तर दो ||
उनको त्रण भी उपलब्ध नहीं ,
जो करते हैं सबकी सेवा |
जो शत्रु बने हैं जंगल के,
वह खाते हैं कदली मेवा ||
जिसने जंगल की रक्षा में.
अपने प्राणों का मोल दिया |
उनकी पावन स्मृतियों को,
मिट्टी के भाव तोल दिया ||
हंसों के होते भी तुमने,
उल्लू सरपंच बनाया है |
बगुलों की पंचायत में,
कौए को पंच बनाया है ||
एक लोमड़ी नचा रही ,
तुम कूद कूद कर नाच रहे |
अरण्यशास्त्र को भूल गये,
तुम पाठ कौन सा बांच रहे ||
बाघों ने साधा मौन क्या,
कुत्ते भी आदमखोर हुए |
तेंदुए भेड़िये थे ही थे,
भालू चीते भी चोर हुए ||
सब एक घाट पानी पीते,
सब एक जगह पर रहते थे |
जो भी जब भी संकट आया,
सब एक साथ ही सहते थे |
पर तुमने डाली फूट सभी के,
मन में द्वेष जगाया है |
जो एक साथ खाते पीते,
उनमें भी बैर समाया है ||
यह हिरन गाय औ वनविलाव ,
जिस दिन जागेंगे खरगोश |
पेड़ों से तुम को बाधेंगे
उस दिन आएगा तुम्हे होश ||
हो गया खेल अब बंद करो ,
यह कूटनीति मनमानी का |
वरना महंगा पड़ जायेगा ,
परिणाम तुम्हें नादानी का ||
बच सको बचो और भागो तुम,
रोको तुम पर जो गिरी गाज |
बनराज सिंह अब जाग गए ,
सब मिलकर सौंपे उन्हें ताज ||
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