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न्यायपालिका रोती है

LAKSHYA
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कार्यपालिका सिसक रही है, न्यायपालिका रोती है I
गुमशुम गुमशुम सी विधायका,चादर ताने सोती है II
हो गया न्याय का तन्त्र फेल,अब मन्त्र वोट का हावी है I
चन्द सिरफिरों के हाथों अब लोकतन्त्र की चावी है II
सत्य न्याय औ राष्ट्र धर्म सब बंद पड़े हैं ताले में I
ईमान लुढ़क कर पहुंच गया भ्रष्टाचारों के पाले में II
मर्यादा नीलाम हो रही सत्ता के गलियारों में I
और सुरक्षा बधीं हुई है राजतन्त्र अधिकारों में II
अजगर को घर में पाल रहे नागों को दूध पिलाते हो I
आतंकी मुस्तन्दों को विरियानी चिकिन खिलाते हो II
समझोता, मिलन, वार्ता की तुम दीपावली सजाते हो I
वह ख़ूनी होली खेल रहे तुम फिर भी नहीं लजाते हो II
आतंकी विस्फोटों के तुमने ही अबसर सोंपें हैं I
भोली भाली जनता के सीने में खंजर घोंपे हैं II
भारत में शांति चाहते हो पहले अफजल को फाँसी दो I
सैनिक जो प्राणों पर खेले फिर उन सबको शाबाशी दो II

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