दिगदिगंत है तिमिर घनेरा, फिर से नया सवेरा लायें अंतर्मन आलोकित करदे आओ ऐसा दीप जलाएं मजहब की मारा मारी में मेरा भारत टूट रहा है जिसमें मानवता रहती है आओ ऐसा गाँव बसायें ||
श्री राम जी जब घर लौटे, लंका विजय दशानन वध कर जगमग जगमग सजी अयोध्या मन भवन था दृश्य मनोहर ज्योतिर्मय हो यह जग सारा ऐसी दीपावली मनाएं अंतर्मन आलोकित करदे आओ ऐसा दीप जलाएं ||
सुख-समृद्धि यश वैभव से, पूरित हो परिवार हमारा तन से मन से तन- मन- धन से असहायों का बनें सहारा दीनों और निर्बलों के घर खुशियों की सौगात लुटाएं अंतर्मन आलोकित करदे आओ ऐसा दीप जलाएं ||
महंगाई की मार बहुत है त्योहारों का दम घुटता है निर्धनता के अंधकार में फंसकर यह जीवन लुटता है रिक्त अभावों के दीपों में करुना का स्नेह बरसायें अंतर्मन आलोकित करदे आओ ऐसा दीप जलाएं ||
चारों और घना कोलाहल शांति कहीं मिलती न मन को क्षण भंगुर जीवन है फिर भी जमा किये हैं काले धन को स्वाभिमान का जीवन जीकर सच्चाई का पथ अपनाएं अंतर्मन आलोकित करदे आओ ऐसा दीप जलाएं ||
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments