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फिर नहीं लौटी बिट्टो

LAKSHYA
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आफिस में घुसते ही मुस्कराहट भरा हाथ जोड़ कर अभिवादन ,
कार्य की व्यस्तता के बाद भी हमेशा प्रशन्न रहना ,
सभी का सम्मान करना सभी से हंसकर बात करना
यह उसके स्वभाव में था उसे देखकर मुझे अपनी बेटी की याद आ जाती
,मुझ से वह भैया कहती में उसे प्यार में बिट्टो कह कर पुकारता
उसकी कार्यशैली,कर्मठता और सहजता से में प्रभावित होता गया
वह भी मुझे पूरा सम्मान देती यहाँ तक कि वह भी मेरे खाने-पीने का पूरा ध्यान रखती
इतनी भावुक कि जरा सा डाटने पर आँखों से आंसुओं की झड़ी लगा देती
पल भर में नाराज हो जाती तो पल भर में मान भी जाती मुझे बाहर रहते हुए भी
कभी घर की कमी महशूस नहीं हुयी बिट्टो मेरा हर तरह से ध्यान रखती
में भी उसका अपनी बेटी के समान ही मानता था
उसकी हर इच्छा पूरी करने का प्रयास करता
किन्तु मुझे हर किसी से उसका खुलेपन से बात करना ठीक नहीं लगता था
उसका घर से बाहर रहना माता पिता का आर्थिक सहयोग भाई बहनों की पढाई की चिंता करना,
अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीना ,कठिनायियों में भी प्रसन्न रहना यह उसकी खूबी थी
पर पता नहीं इस अप्रयासित स्नेह को किसकी नजर लगी
कि एक बार मैने बिट्टो को उसके खुलेपन पर उसे बहुत डाटा में यह भूल गया था
कि वह मेरी बेटी नही है वह सुबक सुबक कर रोने लगी और खरी खोटी सुनते हुए अपने घर चली गयी
बहुत दिनों तक बीमार रही बहुत दिनों के बाद जब आफिस आई तो उसका कार्य और व्यवहार सब कुछ बदल गया था
वह मुझे देख कर भी अनदेखा कर देती मैने उसमें अपनी बिट्टो को ढूंढने का बहुत प्रयास किया किन्तु बिट्टो कहीं नहीं मिली
कभी कभी भाव के सम्बन्ध रक्त के सम्बन्धों से अधिक प्रगाढ़ हो जाते हैं जिनके टूटने पर बहुत दुःख होता है
आज बिट्टो को गए एक बर्ष हो गया ऐसी गयी फिर लौट कर नहीं आई .

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