आदमी तो बन गये इंसान तो बनो मन में धरो धैर्यता मत व्यर्थ में तनो
हरा भरा पेड़ कभी बोलता नहीं अपने गुणों को कभी तोलता नहीं पर सेवा में सदैव खड़ा रहता है शीत गर्मी औ बरसात सहता है डंडे पत्थरों की मार खाता है वह फिर भी ख़ुशी के गीत गाता है वह कष्टों को भी सह कर फल देता है मानों आदमी तो बन गये इंसान तो बनो
सूखे पात हवा पाके बड़ बढाते हैं इसी लिए आँधियों में लडखडाते हैं धरती को देखो भार कितना सहे फिर किसी से वह कुछ न कहे चलती कुदाले उफ़ नही करती माँ समान बेटों का है पेट भरती धरती से सीखो धैर्य प्यारे सजज्नो आदमी तो बन गये इंसान तो बनो
छोटी छोटी बातों पे न क्रोध को करो शैतानों से नहीं भगवान से डरो क्षमा शील बनो पर कायर नहीं भगत सिंह बनो पर डायर नहीं जो भी करना है उसे जानकर करो सेवा को सदैव धर्म मानकर करो बनना कमल है तो कीचड़ सनो आदमी तो बन गये इंसान तो बनो
सीता सावित्री का मन क्लांत हुआ है दामिनी का तेज भी तो शांत हुआ है नैतिक चरित्र की जब हार हो गयी पाश्चात्य सभ्यता सबार हो गयी करुणा दया का भाव कहाँ खोगया लालच का भाव क्यों सवार हो गया कोयला न बनो मेरे प्यारे रत्नों आदमी तो बन गये इंसान तो बनो
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