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मजदूर आदमी

LAKSHYA
LAKSHYA
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किसका मकान गिर गया बनना कहाँ  है कब ,
रखता सदैव ध्यान है मजदूर आदमी |

मंदिर बनाए मस्जिद ,गुरद्वारा ,चर्च को ,
सबको समान मानता मजदूर आदमी |

दुनियाँ का बोझ सर पर उठाये जो घूमता ,
इस देश की पहचान है मजदूर आदमी |

हमसे न हो सका जो वह काम कर गया ,
अद्भुत गुणों की खान है मजदूर आदमी |

चाहे हटाना मलवा या मीनार बनाना ,
समस्या का समाधान है मजदूर आदमी |

थकता न कभी हारता मौसम की मार से ,
ईश्वर का ही वरदान है मजदूर आदमी |

सिकुड़ी है खाल पड़ गयीं चेहरे पे झुरियाँ,
फिर भी रहा गतिमान है मजदूर आदमी |

“राही” जो आये घर पे तो सत्कार कीजिये ,
होता दरिद्रनाराण है मजदूर आदमी |

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