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शराब आदमी को पी रही है

LAKSHYA
LAKSHYA
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समाज को शराब खराब  होती है |
लेकिन शराब तो शराब होती है ||
आदमी ठीक-ठाक दफ्तर जाता है |
लौटते समय गिरता है लडखडाता है ||
नगर में  उसकी अपनी  अलग पहचान है |
फिर भी शराब ही उसका धर्म औ ईमान है ||
धीरे-धीरे पीने वालों का ढंग बदल जाता है |
समय के साथ शराब का रंग बदल जाता है ||
पीने बाले कहते हैं पीने से गम दूर होते हैं |
उनको क्या पता घर  में बच्चे भूखे सोते हैं ||
दुनिया न जाने किस गफ़लत में जी रही है बी|
सच तो यह है कि —
आदमी शराब को नहीं, शराब आदमी को पी रही है ||

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